Monday, March 6, 2017

सच्चा आशिक

जुल्फों के आबो-ताब देखकर मैं जिनके इश्क़ में पड़ा था।
इस रविवार को मेरे घर के दरवाज़े पे उसका बाप खड़ा था।
बोला अबे जिन जुल्फों के जुमले पढ़ पढ़ के,
तू मजनू,राँझा,फरहाद की आत्मा को सता रहा है।
आज तुझे उसी जुल्फों के मालिक का बाप बता रहा है।
तुझे वो मिल जाए,
ऐसा दिन नहीं आएगा।
सुधर का वक़्त है,
वर्ना टांग तुडवाएगा।
मैंने कहा सच्चा आशिक हूँ मैं,
ऐसे बाज़ नहीं आऊंगा।
देख लेना ससुर जी आपके ही सामने,
उसके ज़ुल्फो को सहलाऊँगा।
मुस्करा के बोला उसका बाप,
उन ज़ुल्फ़ों से इतना ही प्यार है तो उसी से मन बहला ले।
मेरी तरफ जाने पहचाने ज़ुल्फो के विग को उछाला और बोला
ले, सहला ले।

Saturday, March 4, 2017

विद्यार्थी और अध्यापक

विद्यार्थी और अध्यापक के बीच,
जब उग अाता है कोई काटा।
तो सुलझाता है उसे हाकी का डंडा
या चांटा।
अगर हाकी का डंडा चला,
तो अध्यापक हस्पताल मे कराहते है।
और कहीं ग़लती से चांटा चला,
तो अध्यापक शहर से बाहर,
छुट्टी पर जाना चाहते है।

Tuesday, February 28, 2017

मगर शायद

दिमाग के सनाटे की गूंज से
बहरा सा हो गया हूँ मैं।
लोग मुझे कहते है पागल जिसपर मुझे यकीं नहीं

मगर शायद ज़रा सा हो गया हु मैं।
धुंध सी मेरी आँखों के आगे
और पीछे अँधेरा है।
मैं अकेला घबराया हुआ
और अ -लोगों ने मुझे घेरा है।
अजनबीपन मंडराता है मेरे इर्द गिर्द
और डर जाता हूँ मैं कि कहीं मुझे चुन ना ले।
चीखता हूँ मैं तकिये से मुँह दबा के
कि कहीं कोई सुन ना ले।
आइना नहीं दिखा पाता अब मेरे
सही चेहरे को।
रगड़ के धोता हूँ मगर हटा नहीं पता
खुद पर पड़े मुखोटे के पहरे को।
बार बार नब्ज़ महसूस करता हूँ
आश्वस्त हूँ कि सांसे चल रही मगर मरा सा हो गया हूँ मैं।
लोग मुझे कहते है पागल जिसपर मुझे यकीं नहीं
मगर शायद ज़रा सा हो गया हूँ मैं।

Monday, February 27, 2017

नोटबंदी

अचानक एक दिन मेरी श्रीमती जी ने
माँगा हमसे हीरा।
हमने कहा भाग्यवान,
क्या है तुम्हारा दिमाग फिरा।
एक तो यहाँ ,
खाने पीने में भी हो रही किल्लत।
ऊपर से हीरा मांगकर
तुम कर रही हमारी
डिस्काउंटेड ज़िल्लत।

हीरा वो भी असली,
हमे तो लिखना भी नहीं आता।
ओ कलयुगी पत्नियों,
अमेरिकन डायमंड तुम्हे क्यों नहीं भाता।
छह गुज़र चुके है (होप फॉर द बेस्ट),
किसी तरह पूरा कर रहा हूँ मैं जन्म नंबर सात।
मगर उसमें भी तुम्हे चैन नहीं,
करना चाहती हो मेरा हृदयाघात।
मेरी पत्नी माथा पकड़कर बोली
ओ मेरे बहरों के सूरदास,
मैं तुम्हारे औकात ही सीमा नहीं लांघ रही थी।
नोटबंदी की कसम
मैं हीरा नहीं, खीरा मांग रही थी।

Friday, February 24, 2017

ओ तेरी !!


मेरी गर्लफ्रेंड ने मुझसे कहा,

यूँ तो तुम्हे ओफेंड करने का मेरा कोई इरादा नहीं है।

मगर बॉयफ्रेंड के हिसाब से,

तुम्हारी तोंद कुछ ज्यादा नहीं है?

आजकल जब तुम मेरे साथ दिखते हो।

तो बॉयफ्रेंड नहीं अंकल-फ्रेंड लगते हो।

अब तो तुम्हारे बाल भी होने लगे है कम।

बंद कर दिया है तुमने लगाना अब गिफ्टों का मरहम।

पता नहीं तुम कब अपनी भुक्कस,

कविताओं के दिवास्वप्न से जगोगे।

ऐसा ही रहा तो मेरी शादी तक तुम,

मेरे ददू लगोगे।

मैंने कहा भूल गयी वो दिन जब मेरा हर व्याख्यान एक कविता,

हर वाक्य एक जुमला होता था।

जब मेरे घर का जूठा बर्तन भी,

तुम्हारे लिए फूलों का गमला होता था।

तुमने कहा था कि मेरा तुमसे मिलना ही,

तुम्हारे लिए सौगात है।

कुछ भी सुना देता था तुम्हे और तुम कहती थी,

क्या बात है - क्या बात है !

मेरी गर्लफ्रेंड ने

सुनकर मेरे मुख से ये छंद।

मेरे मुंह पर दरवाजा किया बंद।

खिड़की से कहा कि बात ख़त्म हो जाती अगर तुम कहते

की तुम अपनी गल्ती पर शर्मिंदा हो।

मगर तुम इन्सान नहीं,

गलतफहमियों का पुलिंदा हो।

तुम्हारा हर जुमला उटपटांग,

और हर गज़ल बिना जज्बात है।

और इडियट मैं तुम्हारी तारीफ़ नहीं प्रश्न पूछा करती थी।

कि तुम चुप नहीं हो रहे,

क्या बात है - क्या बात है?

Thursday, February 23, 2017

शिव

शिव ही शक्ति,
शिव ही भक्ति।
शिव ही मार्ग,
शिव ही मुक्ति।
शिव ही वायु,
शिव ही तल।
शिव अनंत,
शिव अटल।
शिव ही आदि,
शिव ही अंत।
शिव ही योगी,
शिव ही संत।
शिव ही कठोर,
शिव ही मर्म।
शिव ही ज्योति,
शिव ही धर्मं।
शिव ही उग्र,
शिव ही चन्दन।
शिव के चरणों में,
अभिनन्दन।

Wednesday, February 22, 2017

हैरानी


बात हैरानी की है,
ज़रा परेशानी की है।
समझो तो गम्भीर है,
वरना नादानी की है।
आखिर अधिकारी और चपरासी में,
क्या है अंतर ?
अधिकारी रहता बेफिक्र ,
तो चपरासी मस्त कलंदर।
अधिकारी की अपनी ,
खास सीट है।
तो चपरासी केबिन के बाहर,
फिट है।
अधिकारी हो मुंह फट - फूहड़।
तो चपरासी पड़ता है है लड़ झगड़।
दोनों के मुंह लगा पान,
वो भी एक ही दूकान का।
जी चाहा तो काम किया वर्ना इंटरवल,
सानी नहीं कोई शान का।
केवल एक अंतर जो समझ आता है ,
सोचने पर बार बार।
चपरासी को घूस देनी होती है दस -बीस ,
अधिकारी को दस -बीस हज़ार।।


Tuesday, February 21, 2017

मैं भी चोर तू भी चोर

क्यों करे चिल्लम-चिल्ली   
क्यों करे हम शोर।
गले मिल जाए बंधू
मैं भी चोर तू भी चोर।
कहानी बना ले धासु कोई
ब।हर मिडिया है घनघोर।
आपस में लड़ कर क्या फायदा
मैं पतंग तू डोर।
गले मिल जाए बंधू
मैं भी चोर तू भी चोर।।
     

Monday, February 20, 2017

पेंशन की फ़ाइल

 माँ के पेंशन की फ़ाइल साहब निपटाओ,
घर में बड़ी तंगी है ।
बाबू बोला दाँत दिखाकर,
बेटा दुनियाँ बड़ी भिखमंगी है ।
ऊपर तक खिलाना पड़ता है।
अपने हिस्से तो बस आठ आना पड़ता है ।
बोला युवक पैसे कहा से लाऊँगा,
दे दिया तो भूखा मर जाऊंगा ।
बाबू बोला माँ की छोड ,
देता जा अपने पेंशन की अर्जी ।

मुफ्त मे सलाह दिया ,
काम नहीं है फर्जी।
युवक बोला मगर मेरी नौकरी में ,
तीस साल बाकी है ।
बाबू बोला बिना चढ़ावा ,
ये भी ना काफी है।
अर्जी देता जा शायद ,
फ़ाइल तेरी निकल जाएगी ।
तुझे ना मिली तो ना मिली ,
तेरे बीवी को तेरी पेंशन मिल जाएगी ।
बीवी को पेंशन मिल जाएगी,
तेरे बेटे को जूता न घिसना पड़ेगा।
बाबु-अफसर के बीच,
ना पिसना पड़ेगा।
खाएगा वो अपने पैसे की अगर,
तो तेरे पेंशन से जेब खर्च के मज़े लेगा।
वरना ख्वामख्वाह ही सिस्टम को कोसेगा,
और तुझे गालियाँ देगा।

Sunday, February 19, 2017

उम्दा इंसान



ये महिना कुछ ज्यादा ही खीच गया है,
ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता।
राशन दूकान का बनिया रोज़ पैसे मांगता है,
सब्र से काम ही नहीं लेता
मझले बेटे का अंगूठा अब
जूतों में दबने लगा है।
बड़ी बेटी का सलवार अब
ज़रा छोटा लगने लगा है।
घरवाली के हाथ मिटटी से बर्तन धोते-धोते
खुरदरे हो गए है।
मोहल्ले वाले भी रोज़ चंदा मांगने आ जाते है,
सारे के सारे मसखरे हो गए है।
मेरी साइकिल कुछ ज्यादा ही पुरानी हो गई है,
हर दो दिन में खराब हो जाती है।
छोटी बेटी भी कुछ नहीं समझती,
खिलोने देखते ही बेताब हो जाती है।
सुना है दूध के दाम,
फिर से बढ़ने वाले है।
मकान की मरम्मत भी करनी होगी,
बादल अब चढ़ने वाले है।
तीन महीने पहले सुना था कि तनख्वाह बढ़ेगी,
मगर अब तो ये एक दिवास्वप्न सा लगता है।
और हर सप्ताह महंगाई बढ़ना,
एक रस्म सा लगता है।
सोचता हूँ गाँव की ज़मीन बेच दूँ,
कुछ पैसे हाथ होंगे।
घर से भी बटवारे का जोर है,
सोचा था भाई जीवन भर साथ होंगे।
खैर अब कौन किसका साथ देता है,
ज़माना खुदगर्ज़ सा हो चला है।
सबकी मदद करना,
एक मर्ज़ सा हो चला है।
और मैं दोष भी किसको दूँ,
तबसे मैं भी खुद के लिए ही तो परेशान हूँ।
तो फिर कैसे मान लूँ कि,
मैं एक उम्दा इंसान हूँ।

Friday, February 17, 2017

रिमोट कहाँ है?

हम देखते है भूख में बिलखते किसी बच्चे का रोना,
और चैनल बदल लेते हैं।
हम देखते है किसी मासूम की अस्मिता का खोना,
और चैनल बदल लेते हैं।
हम देखते हैं किसी बेबस गरीब का असहज बिछौना,
और चैनल बदल लेते हैं।
 हम देखते हैं भ्रष्ट राजनीती का रूप घिनौना,
और चैनल बदल लेते हैं।
हम देखते है देश के प्रहरियों का मौत की नींद सोना,
और चैनल बदल लेते हैं।
हम देखते है संसद को बनता एक खिलौना,
और चैनल बदल लेते हैं।
हम देखते है महंगाई का सातवे आसमान पर होना,
और चैनल बदल लेते हैं।
हम देखते है किसी कि खूबसूरती को तेजाब से भिगोना,
और चैनल बदल लेते हैं।
प्रश्न ये है कि,
असख्य चैनल बदलने वाले हम,
क्या इस प्रवृति से बाज़ नहीं आएँगे।
कहीं जब हमारे साथ कुछ अनहोनी हुई,
तो अपनी ज़िन्दगी का चैनल बदलने वाला रिमोट,
हम कहाँ से लाएँगे?


Thursday, February 16, 2017

जीत मेरी ही होगी

कर मेरे हृदय पर अमानवीय,
भीषण वार।
कर मुझे सरेआम,
शर्मसार।
छिन्न-भिन्न कर दे मेरे विश्वास को,
संकट में डाल दे मेरे अपनों को-ख़ास को।
जिव्हा काट दे मेरी,
कर दे मुझे मौन।
मिटा दे मेरे अस्तित्व को,
भूला दे मुझे मैं हूँ कौन।
खंड- खंड कर दे मेरे सपनों को,
और डाल दे उसपर निराशा का साया।
लुप्त कर दे मेरी परछाई,
जला दे मेरी काया।
कर ले मेरी सांसों को कैद,
बना ले मेरे उम्मीदों को बंदी।
वज्रपात कर ले मेरी नियति पर
आँखें अंधी -बाते अंधी।
तब भी-
तब भी पूरे साहस से मैं तुझे ललकारूंगा।
ओ 'समय',
तू अनगिनत बार मुझे धराशायी करेगा,
मैं उठकर फिर वापस मारूंगा।
तू होगा बलवान,
और मैं निर्बल भुक्त-भोगी।
टूट भी जाऊ पर मिटूंगा नहीं
क्योकि जीत मेरी ही होगी-
मेरी ही होगी।

Wednesday, February 15, 2017

शब्द और सच : छोटी कहानी बड़ा सच



जनवरी का महीना चल रहा था और ठंड अपने चरम पर थी। ऐसे में एक जर्जर झोपड़ा दम साधे खड़ा था और उसके अंदर मंगल अपने घुटनों पर सर रखे जलते हुए लालटेन को अनवरत देख रहा था। जैसे जैसे उस लालटेन का किरासन कम हो रहा था वैसे-वैसे मंगल के ललाट पर रेखाएं ज़्यादा हो रही थीं।

मंगल की बीवी कंबल, चादर और जाने किन-किन चीज़ों के अवशेषों से अपने छोटे बेटे को बार-बार ढकने की नाकाम कोशिश कर रही थी। मंगल का बारह वर्षीय बेटा अपना सबक याद कर रहा था। अचानक उसके बेटे ने उससे पूछा " बाबूजी, ये आज़ादी क्या होती है?"

इस अप्रत्याशित सवाल से मंगल चौंक गया। "बाबूजी, ये आज़ादी क्या होती है?" बेटे ने दोहराया। मंगल को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। "बताओ ना, ये आज़ादी क्या होती है?" बेटे ने फ़िर सवाल दागा। "चुपचाप पढ़ता क्यो नहीं?" कोई चारा ना देख मंगल ने डांट दिया।

बेटा किताब की ओर देखकर जोर-जोर से पढ़ने लगा, "भारत आज़ाद और संपन्न देश है। यहां के लोग खुशहाल हैं...." मंगल ने देखा किरासन लगभग ख़त्म हो गई है। उसने आंखें बंद कर ली।