Wednesday, February 15, 2017

शब्द और सच : छोटी कहानी बड़ा सच



जनवरी का महीना चल रहा था और ठंड अपने चरम पर थी। ऐसे में एक जर्जर झोपड़ा दम साधे खड़ा था और उसके अंदर मंगल अपने घुटनों पर सर रखे जलते हुए लालटेन को अनवरत देख रहा था। जैसे जैसे उस लालटेन का किरासन कम हो रहा था वैसे-वैसे मंगल के ललाट पर रेखाएं ज़्यादा हो रही थीं।

मंगल की बीवी कंबल, चादर और जाने किन-किन चीज़ों के अवशेषों से अपने छोटे बेटे को बार-बार ढकने की नाकाम कोशिश कर रही थी। मंगल का बारह वर्षीय बेटा अपना सबक याद कर रहा था। अचानक उसके बेटे ने उससे पूछा " बाबूजी, ये आज़ादी क्या होती है?"

इस अप्रत्याशित सवाल से मंगल चौंक गया। "बाबूजी, ये आज़ादी क्या होती है?" बेटे ने दोहराया। मंगल को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। "बताओ ना, ये आज़ादी क्या होती है?" बेटे ने फ़िर सवाल दागा। "चुपचाप पढ़ता क्यो नहीं?" कोई चारा ना देख मंगल ने डांट दिया।

बेटा किताब की ओर देखकर जोर-जोर से पढ़ने लगा, "भारत आज़ाद और संपन्न देश है। यहां के लोग खुशहाल हैं...." मंगल ने देखा किरासन लगभग ख़त्म हो गई है। उसने आंखें बंद कर ली।

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