Thursday, February 16, 2017

जीत मेरी ही होगी

कर मेरे हृदय पर अमानवीय,
भीषण वार।
कर मुझे सरेआम,
शर्मसार।
छिन्न-भिन्न कर दे मेरे विश्वास को,
संकट में डाल दे मेरे अपनों को-ख़ास को।
जिव्हा काट दे मेरी,
कर दे मुझे मौन।
मिटा दे मेरे अस्तित्व को,
भूला दे मुझे मैं हूँ कौन।
खंड- खंड कर दे मेरे सपनों को,
और डाल दे उसपर निराशा का साया।
लुप्त कर दे मेरी परछाई,
जला दे मेरी काया।
कर ले मेरी सांसों को कैद,
बना ले मेरे उम्मीदों को बंदी।
वज्रपात कर ले मेरी नियति पर
आँखें अंधी -बाते अंधी।
तब भी-
तब भी पूरे साहस से मैं तुझे ललकारूंगा।
ओ 'समय',
तू अनगिनत बार मुझे धराशायी करेगा,
मैं उठकर फिर वापस मारूंगा।
तू होगा बलवान,
और मैं निर्बल भुक्त-भोगी।
टूट भी जाऊ पर मिटूंगा नहीं
क्योकि जीत मेरी ही होगी-
मेरी ही होगी।

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