Monday, February 27, 2017

नोटबंदी

अचानक एक दिन मेरी श्रीमती जी ने
माँगा हमसे हीरा।
हमने कहा भाग्यवान,
क्या है तुम्हारा दिमाग फिरा।
एक तो यहाँ ,
खाने पीने में भी हो रही किल्लत।
ऊपर से हीरा मांगकर
तुम कर रही हमारी
डिस्काउंटेड ज़िल्लत।

हीरा वो भी असली,
हमे तो लिखना भी नहीं आता।
ओ कलयुगी पत्नियों,
अमेरिकन डायमंड तुम्हे क्यों नहीं भाता।
छह गुज़र चुके है (होप फॉर द बेस्ट),
किसी तरह पूरा कर रहा हूँ मैं जन्म नंबर सात।
मगर उसमें भी तुम्हे चैन नहीं,
करना चाहती हो मेरा हृदयाघात।
मेरी पत्नी माथा पकड़कर बोली
ओ मेरे बहरों के सूरदास,
मैं तुम्हारे औकात ही सीमा नहीं लांघ रही थी।
नोटबंदी की कसम
मैं हीरा नहीं, खीरा मांग रही थी।

No comments:

Post a Comment